र्णिमा और अमावस्या के दिन क्या करें और क्या न करें, ये दोनों विशेष दिन हिंदू पंचांग में विशेष महत्व रखते हैं। क्या आप जानते हैं कि इन दोनों रातों में किए गए कुछ आसान से उपाय आपके जीवन को बदल सकते हैं?
पूर्णिमा और अमावस्या का असर केवल हमारे धार्मिक या तात्त्विक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी गहरा होता है।
अगर आप चाहते हैं कि पूर्णिमा और अमावस्या के दिन क्या करें और क्या न करें तो इस लेख को पूरा पढ़ें। हम आपको बताएंगे कि इन विशेष तिथियों में क्या काम करना चाहिए और किन चीजों से दूर रहना चाहिए, ताकि आप इन दिनों का सर्वोत्तम लाभ उठा सकें।
पूर्णिमा और अमावस्या के दिन क्या करें और क्या न करें (Dos and Don’ts on Purnima and Amavasya)

पूर्णिमा और अमावस्या के दिन खास तरह की ऊर्जा का संचार होता है, जो हमारी मानसिक और शारीरिक स्थिति पर गहरा प्रभाव डालता है। इन दिनों में कुछ विशेष कार्यों को करना और कुछ कार्यों से बचना बहुत फायदेमंद हो सकता है।
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण शक्ति में होता है, जिससे हमारे मनोभावनाओं पर असर पड़ता है। इस दिन पूजा, ध्यान और साधना से मानसिक शांति मिलती है। वहीं अमावस्या के दिन, जब चंद्रमा गायब होता है, यह समय पितृ दोष निवारण और ग्रह दोषों को दूर करने के लिए बहुत उपयुक्त होता है।
हालांकि, इन दिनों में कुछ कार्यों से बचना भी जरूरी है, जैसे कि गुस्सा, हिंसा या अनैतिक कार्यों से दूर रहना चाहिए। इन विशेष तिथियों के दौरान साधना और सही उपाय करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव आएगा।
आपको इन दोनों रातों का सही लाभ उठाने के लिए यह जानना चाहिए कि कब क्या करना चाहिए और किन बातों से बचना चाहिए। जानने के लिए नीचे विस्तार से पढ़ें।
अमावस्या का महत्व और उपाय

अमावस्या का दिन विशेष रूप से पितृ दोष निवारण और ग्रहों की अशुभता को दूर करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन कुछ खास उपायों से आप जीवन की समस्याओं का समाधान पा सकते हैं।
अमावस्या के दिन किए गए उपाय न केवल पितृ दोष से मुक्ति दिलाते हैं, बल्कि यह आर्थिक, मानसिक और पारिवारिक परेशानियों को भी दूर करने में मदद करते हैं। आइए जानें कुछ प्रमुख उपाय जिन्हें अमावस्या के दिन किया जा सकता है:
घर की सफाई और पूजा
अमावस्या के दिन घर की सफाई करना और मंदिर पर दीया जलाना शुभ माना जाता है। घर के कोने-कोने को अच्छे से साफ करें और बेकार की चीजों को निकालकर बेच दें।
इस दिन घर के मंदिर और तुलसी के पौधे पर दीया जलाना चाहिए। इससे घर में शांति बनी रहती है और दरिद्रता दूर होती है।
तुलसी और बिल्व पत्र का उपयोग
अमावस्या पर तुलसी के पत्ते या बिल्व पत्र नहीं तोड़ने चाहिए। इन्हें एक दिन पहले तोड़कर रखें और देवी-देवताओं को अर्पित करें। यह उपाय विशेष रूप से शिव पूजन में लाभकारी है।
धन लाभ के लिए उपाय
धन लाभ के लिए अमावस्या के दिन पीली त्रिकोण आकृति की पताका विष्णु मंदिर में ऊंचे स्थान पर लहराती रखें। इससे भाग्य में तेजी से बदलाव आता है और धन संबंधी समस्याओं का समाधान होता है।
कुआं में दूध डालना
गहरे गड्ढे या कुएं में एक चम्मच दूध डालने से कार्यों में आ रही रुकावटें दूर होती हैं। इसके साथ ही जीवन में समृद्धि आती है और शुभता का वास होता है।
शनि और पितृ दोष निवारण
अमावस्या के दिन शनि देव को काले उड़द, काले तिल, लोहा, नीला पुष्प और काले कपड़े अर्पित करें। इसके साथ शनि मंत्र का जाप करने से शनि के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है और ग्रह दोष कम होते हैं।
गाय को फल खिलाना
गाय को फल खिलाना एक शुभ और धार्मिक कार्य है, जो घर में सुख-शांति और समृद्धि लाता है। खासकर अमावस्या के दिन गाय को पांच प्रकार के फल खिलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह उपाय पितृ कृपा प्राप्त करने और किसी भी तरह की बाधाओं को दूर करने के लिए प्रभावी माना जाता है।
पितृ तर्पण
पितरों की तृप्ति के लिए अमावस्या पर विशेष पूजा करनी चाहिए। इसके लिए पीतल के बर्तन में जल, गंगाजल, दूध, तिल, चावल डालकर पितरों का तर्पण करें। तर्पण का जल किसी वृक्ष की जड़ में डालना चाहिए, ताकि पितरों को संतुष्टि मिले और उनका आशीर्वाद प्राप्त हो।
मछलियों को आटे की गोलियां
अमावस्या के दिन सरोवर में गेहूं के आटे की गोलियां डालने से पितरों और देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। यह उपाय धन संबंधी समस्याओं को हल करता है और जीवन में स्थिरता लाता है।
ग्रह दोष और मानसिक समस्याओं का समाधान
अमावस्या के दिन यदि व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान या तनावग्रस्त होता है, तो वह हनुमान चालीसा का पाठ कर सकते हैं। हनुमान जी के मंदिर में दीपक जलाने और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने से मानसिक शांति मिलती है।
क्रोध और अनैतिक कार्यों से दूर रहना
अमावस्या के दिन क्रोध, हिंसा, शराब, मांसाहार और अन्य अनैतिक कार्यों से दूर रहना चाहिए। इस दिन मानसिक और शारीरिक शांति प्राप्त करने के लिए इन कार्यों से बचना बहुत महत्वपूर्ण है।
पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीपक
अमावस्या की रात पीपल के पेड़ के नीचे कड़वे तेल का दीपक जलाने से पितृ और देवता प्रसन्न होते हैं। इस उपाय से जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है और घर में शांति बनी रहती है।
काले कुत्ते को रोटी खिलाना
अमावस्या के दिन काले कुत्ते को कड़वे तेल में रोटी लगाकर खिलाने से दुश्मन शांत होते हैं और आकस्मिक विपत्तियों से बचाव होता है। यह उपाय नकारात्मक प्रभावों को समाप्त करता है।
नए कामों से बचना
अमावस्या के दिन किसी भी नए कार्य की शुरुआत, यात्रा, खरीद-फरोख्त या शुभ कार्यों से बचना चाहिए। यह समय पहले से चल रहे कार्यों को पूरा करने के लिए है। नए कार्यों की शुरुआत से रुकावट आ सकती है।
विशेष अमावस्या
हर अमावस्या का महत्व होता है, लेकिन सोमवार और शनिवार को पड़ने वाली अमावस्या विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। इसके अलावा, मौनी अमावस्या और सर्वपितृ दोष अमावस्या अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
इन दिनों विशेष रूप से पितृ दोष और ग्रह दोषों का निवारण किया जाता है। इन अमावस्याओं में किए गए उपायों से जीवन में स्थिरता और समृद्धि मिलती है।
पूर्णिमा का महत्व और उपाय

पूर्णिमा, शुक्ल पक्ष के 15वें दिन को मनाई जाती है और यह हर महीने एक बार आती है। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण रूप में आकाश में दिखता है, जो इसे हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाता है। ज्योतिषशास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना जाता है।
इस दिन विशेष रूप से चंद्रमा और भगवान शिव की पूजा करने से मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा, भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है, जो धन, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है।
पूर्णिमा का दिन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह मानसिक और आध्यात्मिक शांति को भी बढ़ाता है। इस दिन किए गए व्रत और पूजा से व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है, और उसका जीवन सुखमय और समृद्ध होता है। आइए, जानते हैं इस दिन के विशेष महत्व और पालन करने के तरीके के बारे में।
पूर्णिमा व्रत के दिन विशेष महत्व वाली तिथियां
पूर्णिमा का दिन प्रत्येक महीने में एक बार आता है, लेकिन कुछ विशेष पूर्णिमा तिथियों का महत्व धार्मिक दृष्टि से और भी बढ़ जाता है। इनमें प्रमुख हैं माघ, आषाढ़, सावन, आश्विन और कार्तिक पूर्णिमा। इन तिथियों पर विशेष पूजा और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।
माघ पूर्णिमा: यह दिन गंगा स्नान के लिए अत्यधिक पुण्यदायी माना जाता है। इस दिन प्रयाग में देवी-देवता स्नान करने आते हैं, और भक्तों को गंगा स्नान का विशेष लाभ मिलता है।
आषाढ़ पूर्णिमा: इस दिन गुरु पूर्णिमा का आयोजन होता है, जो महर्षि व्यास का जन्म दिवस भी होता है। इस दिन गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त किया जाता है।
सावन पूर्णिमा: सावन के महीने में आने वाली पूर्णिमा पर रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। साथ ही, इस दिन भगवान वामन की पूजा भी की जाती है।
आश्विन पूर्णिमा: इसे शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, और यह रात विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए फलदायी मानी जाती है।
कार्तिक पूर्णिमा: इस दिन गंगा स्नान और दीपदान का विशेष महत्व है। यह दिन गुरु नानक देव की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। साथ ही, यह दिन वाराणसी में देव दिवाली के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
पूर्णिमा व्रत के नियम और पालन के तरीके

पूर्णिमा व्रत का पालन शारीरिक और मानसिक शुद्धता के साथ किया जाता है। इस दिन व्रत रखने के कुछ विशेष नियम होते हैं, जिनका पालन करने से अधिक पुण्य और आशीर्वाद मिलता है।
1. स्नान और शुद्धता: पूर्णिमा व्रत की शुरुआत सुबह जल्दी उठकर स्नान से करनी चाहिए। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र पहनने चाहिए। शारीरिक और मानसिक शुद्धता को ध्यान में रखते हुए इस दिन व्रत किया जाता है।
2. उपवास और संयम: पूर्णिमा व्रत के दिन उपवास रखना महत्वपूर्ण होता है। अन्न का सेवन नहीं किया जाता, लेकिन जल और फलाहार का सेवन किया जा सकता है। यदि किसी को उपवास रखने में कठिनाई हो, तो वे फलाहार कर सकते हैं।
3. पूजा और आराधना: इस दिन भगवान विष्णु और चंद्रमा की पूजा करना आवश्यक होता है। पूजा स्थल को स्वच्छ करके दीपक जलाएं और भगवान की मूर्ति या तस्वीर के सामने फूल, चावल, धूप और नैवेद्य अर्पित करें।
4. व्रत कथा का श्रवण: पूर्णिमा व्रत की कथा सुनने से व्रत का लाभ कई गुना बढ़ जाता है। इस दिन धार्मिक सत्संग और भजन-कीर्तन में भाग लेने से मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
5. दान और पुण्य: दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। इस दिन गरीबों को भोजन, वस्त्र और धन का दान करना पुण्य का कार्य माना जाता है। गौ माता को हरा चारा खिलाना भी शुभ माना जाता है।
6. चंद्रमा को अर्घ्य देना: रात के समय चंद्रमा के उदय होने पर उन्हें अर्घ्य देना आवश्यक है। इसके लिए जल से भरा तांबे का लोटा लें, उसमें चावल, फूल और थोड़ा दूध मिलाकर चंद्रमा को अर्पित करें। इस क्रिया से व्रत का पुण्य और बढ़ जाता है।
7. सदाचार और ब्रह्मचर्य का पालन: व्रत के दौरान किसी भी प्रकार के गलत विचारों और कार्यों से दूर रहना चाहिए। सदाचार और ब्रह्मचर्य का पालन इस दिन करना आवश्यक है।
पूर्णिमा व्रत की कथा और महत्व
पूर्णिमा व्रत की एक प्रसिद्ध कथा है, जो इसके महत्व को और अधिक स्पष्ट करती है। एक समय की बात है, एक गरीब ब्राह्मण दंपत्ति जो अत्यंत धर्मात्मा थे, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय थी।
एक दिन ब्राह्मण ने अपने गांव के पुजारी से अपनी समस्या बताई, और पुजारी ने उन्हें पूर्णिमा व्रत करने का सुझाव दिया। ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने पूरी श्रद्धा से पूर्णिमा व्रत का पालन किया, और उन्होंने उपवास रखकर भगवान विष्णु की पूजा की।
कुछ समय बाद, उनके जीवन में चमत्कारी परिवर्तन आया और उनकी आर्थिक स्थिति सुधरने लगी। इस प्रकार, पूर्णिमा व्रत ने उनके जीवन में खुशियों और समृद्धि का आगमन किया।
पूर्णिमा व्रत का धार्मिक और मानसिक प्रभाव
पूर्णिमा व्रत का पालन करने से व्यक्ति के जीवन में न केवल धार्मिक लाभ होता है, बल्कि मानसिक शांति और संतुलन भी मिलता है। भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है। यह व्रत एक व्यक्ति को मानसिक शांति, आध्यात्मिक बल और जीवन के संतुलन की प्राप्ति में मदद करता है।
पूर्णिमा व्रत का महत्व
पूर्णिमा व्रत का पालन करने से जीवन में समृद्धि, शांति और संतुलन आता है। चंद्रमा की उपासना और भगवान विष्णु की पूजा से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
इस व्रत के माध्यम से न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि एक व्यक्ति का आंतरिक सुख और संतुलन भी बढ़ता है।
पूर्णिमा के दिन किए गए अनुष्ठान और पूजा से जीवन में चमत्कारी बदलाव लाए जा सकते हैं, और यह दिन जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि का प्रतीक बन जाता है।
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पूर्णिमा और अमावस्या के मानसिक प्रभाव
पूर्णिमा और अमावस्या के दिन चंद्रमा की स्थिति से मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कई अध्ययनों से यह सिद्ध हुआ है कि चंद्रमा के बढ़ते या घटते रूप के दौरान मानसिक स्थिति में बदलाव आते हैं।
अमावस्या की रात में चंद्रमा अपनी पूरी शक्ति में होता है, जिससे विशेष रूप से मानसिक समस्याओं या भावनाओं का प्रभाव अधिक होता है। यह दिन मानसिक शांति प्राप्त करने और ध्यान की साधना के लिए उपयुक्त होता है।
निष्कर्ष
अमावस्या और पूर्णिमा का महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के संदर्भ में भी है। इन रातों में साधना, ध्यान और खास उपायों से व्यक्ति अपने जीवन में स्थिरता, शांति और समृद्धि ला सकता है।
अमावस्या के दिन किए गए विशेष उपायों से पितृ दोष, ग्रह दोष, मानसिक परेशानियों और आर्थिक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। इस प्रकार, अमावस्या और पूर्णिमा की रातों का महत्व जीवन को बेहतर बनाने के लिए अनमोल है।
FAQs
पूर्णिमा और अमावस्या के दिन क्या खास करना चाहिए?
पूर्णिमा और अमावस्या के दिन कई खास धार्मिक उपाय किए जाते हैं, जिनसे जीवन में शांति और समृद्धि आती है। अमावस्या के दिन पितृ दोष निवारण के उपाय जैसे पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीपक जलाना, गाय को फल खिलाना, और तंत्र-मंत्र का जाप करना फायदेमंद रहता है। वहीं पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की शक्ति को संतुलित करने के लिए विशेष पूजा और साधना की जाती है। इस दौरान ध्यान और आत्मविश्लेषण से मानसिक शांति भी मिलती है।
क्या अमावस्या के दिन किसी नए काम की शुरुआत करनी चाहिए?
अमावस्या के दिन किसी भी नए काम की शुरुआत करना ठीक नहीं माना जाता है। यह दिन ग्रहों के प्रभाव के कारण रुकावटों और समस्याओं का सामना करवा सकता है। ज्योतिषियों का कहना है कि अमावस्या का समय पिछले कार्यों को ठीक करने और मानसिक शांति के लिए है, न कि नए कार्य शुरू करने के लिए। इसलिए इस दिन नए व्यवसाय, यात्रा या अन्य शुभ कार्यों से बचना चाहिए।
क्या अमावस्या पर तर्पण करना आवश्यक है?
हां, अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। यह दिन पितृ दोष निवारण और उनके आशीर्वाद के लिए विशेष है। तर्पण के दौरान गंगाजल, दूध, तिल, और अन्य पवित्र सामग्री से पितरों का पूजन और तर्पण करना पितृ दोष को दूर करता है और जीवन में समृद्धि लाता है। इस दिन विशेष पूजा और तर्पण से पितरों की कृपा प्राप्त होती है, जो आपके कार्यों में सफलता लाने में मदद करती है।
पूर्णिमा के दिन क्या विशेष पूजा करनी चाहिए?
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की पूजा करना विशेष महत्व रखता है। इस दिन चंद्रमा के प्रभाव को संतुलित करने के लिए हल्दी, दूध और चंदन से चंद्रमा की पूजा की जाती है। साथ ही, आप श्री विष्णु पूजा, शिव पूजा, और देवी पूजा भी कर सकते हैं। पूर्णिमा की रात में विशेष रूप से ध्यान और साधना करने से मानसिक शांति मिलती है और बुरे विचारों से छुटकारा मिलता है।
क्या अमावस्या और पूर्णिमा के दिन किसी प्रकार का व्रत रखना चाहिए?
अमावस्या और पूर्णिमा दोनों ही तिथियों पर व्रत रखना अत्यधिक लाभकारी होता है। अमावस्या पर पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए व्रत और पूजा करना उपयुक्त रहता है, जबकि पूर्णिमा पर चंद्रमा की शक्ति से संबंधित व्रत और पूजा से मानसिक शांति और सुख प्राप्त होता है। दोनों दिन उपवासी रहकर ध्यान और साधना करने से जीवन में स्थिरता और समृद्धि आती है।

विजय वर्मा वैदिक ज्योतिष (Vedic Astrology) और रत्न विज्ञान (Gemstone Science) में 20+ वर्षों का अनुभव रखते हैं। उन्होंने 10,000 से अधिक कुंडलियों (Horoscopes) का विश्लेषण किया है और व्यक्तिगत व पेशेवर उन्नति के लिए सटीक मार्गदर्शन प्रदान किया है। उनका अनुभव उन्हें एक भरोसेमंद ज्योतिष विशेषज्ञ बनाता है।